Bhart ka apna puja bazar

Vinita Puja Mart

::भूमि पूजन और उसका महत्‍व ::

सनातन धर्मग्रंथों में धरती को मां का दर्जा दिया गया है। धरती हमारे लिए अनेक सुविधाओं का स्रोत है। धरती को सम्‍मान देने हेतु शास्‍त्रों में भूमि पर किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उसके पूजन का विधान है। यदि किसी भूमि पर पूर्व समय में कोई गलत कार्य किया गया हो तो उस भूमि को खरीदने वाले व्‍यक्‍ति को भूमि पूजन अवश्य करवाना चाहिए। ऐसा करने से उस भूमि की अपवित्रता दूर हो जाती है। भूमि पूजन से भविष्‍य में आने वाली बाधाओं से भी मुक्‍ति मिलती है। मान्‍यता है, कि भूमि पूजन के प्रभाव से भूमि पर किसी प्रकार का दोष अथवा कोई नकारात्‍मक ऊर्जा हो तो उसका नाश हो जाता है। भूमि पूजन न करवाने से उस स्थान से जुड़ी नकारात्‍मक ऊर्जा बनी रहती है। वह आपके जीवन में क्‍लेश, नकारात्‍मकता, हानि और दुःख का कारक बनती है। भूमि पूजन का विधान तो देवताओं द्वारा भी मान्‍य है। अत: कोई भी नई जमीन खरीदने के बाद उसका पूजा या भूमि पूजन अवश्‍य ही करवाना चाहिए।

नींव की खुदाई में पूजन एवं दिशा का ज्ञान बहुत आवश्यक है। भूमि पूजन के उपरांत नींव की खुदाई ईशान कोण से ही प्रारंभ करवाएं। ईशान के बाद आग्नेय कोण की खुदाई करवाएं। आग्नेय के बाद वायव्य कोण, तथा वायव्य के बाद नैऋत्य कोण की खुदाई करवाएं। कोणों की खुदाई के बाद दिशा की खुदाई करवाएं। पूर्व, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण इसी क्रम में खुदाई करवाएं। नींव की भराई, नींव की खुदाई के विपरीत क्रम में करवाएं। सबसे पहले नैऋत्य कोण की भराई करवाएं। तत्पश्चात् वायव्य कोण, आग्नेय कोण तथा ईशान कोण की भराई करवाएं। अब दिशाओं में नींव की भराई करवाएं। सबसे पहले दक्षिण दिशा में भराई करवाएं। इसके उपरांत पश्चिम, उत्तर व पूर्व में क्रम से भराई करवाएं।

नींव पूजन में एक छोटे कछुए के ऊपर चांदी या तांबे का कलश स्थापित किया जाना चाहिए। कलश के अंदर चांदी के सर्प का जोड़ा, लोहे की चार कीलें, हल्दी की पांच गांठें, पान के 11 पत्ते, तुलसी की 35 पत्तियां, मिट्टी के11 दीपक, छोटे आकार के पांच औजार, सिक्के, आटे की पंजीरी, फल, नारियल, गुड़, पांच चौकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, राम-नाम पुस्तिका, पंच रत्न तथा पंच धातु रखना चाहिए। समस्त सामग्री को कलश में रखकर कलश का मुख लाल कपड़े से बांधकर नींव में स्थापित करना चाहिए।

भारतीय समाज में अनेकों शास्त्र पाये जाते हैं, इनमें से एक शास्त्र है ‘वास्तु शास्त्र’, जिसका प्रयोग प्राचीन समय से ही किया जाता रहा है। वास्तु शास्त्र का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व होता है। जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रोग के प्रविष्ट करने का मुख्य मार्ग मुख होता है, उसी प्रकार किसी भी प्रकार के भवन निर्माण में वास्तु शास्त्र का अत्यधिक महत्त्व होता है। यदि वास्तु के नियमों का पालन किया जाये तो जीवन सुखमय हो जाता है l

वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन निर्माण कराने के साथ-साथ घर की वस्तुओं के रखरखाव में भी वास्तुशास्त्र का बड़ा महत्व है।  जब भी आप घर बनाए तो वास्तु के नियमों का पालन करें, जिससे घर में सुख, शांति तथा समृद्धि बनीं रहे। सुख, शांति तथा समृद्धि हेतु निर्माण के पूर्व वास्तुदेव का पूजन करना चाहिए तथा निर्माण के पश्चात् गृह-प्रवेश के शुभ अवसर पर वास्तु-शांति, होम इत्यादि किसी योग्य एवं अनुभवी ब्राह्मण, गुरु अथवा पुरोहित द्वारा अवश्य करवाना चाहिए।

ऐसा माना जाता है, कि धरती के नीचे पाताल लोक है जिसके स्वामी शेषनाग हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद में लिखा है, कि पृथ्वी के नीचे पाताललोक है, और इसके स्वामी शेषनाग हैं। इसीलिए कभी भी, किसी भी स्थान पर नींव पूजन या भूमि पूजन करते समय चांदी के नाग का जोड़ा रखा जाता है।

वास्तु शांति के लिए अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापना व गृह प्रवेश आदि अवसरों पर वास्तु देव की पूजा का विधान है। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह पूजन किसी शुभ दिन या फिर रवि पुष्य योग में ही करवाना चाहिए।

गृह प्रवेश पूजा और उसका महत्‍व

नए घर के निर्माण या खरीद करने के बाद उसमें निवास करने या रहने से पहले घर में पूजा करवाई जाती है। अपना घर होना हर किसी के जीवन का सपना होता है और जब हम नए घर में जाते हैं तो इसी उम्मीद से प्रवेश करते हैं कि घर में हमेशा सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे और इसे ही गृह प्रवेश की पूजा कहते हैं। गृह प्रवेश घर की शुद्धिकरण और सुख शांति के लिए कराया जाता है। नए घर में हम नई उम्मीदें और सपने लेकर प्रवेश करते हैं। ऐसे में पूजा और हवन का बहुत महत्व होता है। सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि घर में प्रवेश करने से पहले पूजा पाठ और हवन करने से घर में खुशियां आती हैं और भगवान का वास होता है। कई बार ऐसा होता है कि घर बनाते वक्त वास्तु पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है, ऐसे में पूजा के दौरान इन सब चीजों की शुद्धि हो जाती है।

शास्त्रों के अनुसार गृह प्रवेश तीन प्रकार के होते हैं l

1) अपूर्व गृह प्रवेश – जब पहली बार बनाये गये नये घर में प्रवेश किया जाता है तो वह अपूर्व गृह प्रवेश कहलाता है।

2) सपूर्व गृह प्रवेश – जब किसी कारण से व्यक्ति अपने परिवार सहित प्रवास पर होता है और अपने घर को कुछ समय के लिये खाली छोड़ देता है तब दोबारा वहां रहने के लिये जाने पर जो गृह प्रवेश करवाया जाता है वह सपूर्व गृह प्रवेश कहलाता है।

3) द्वान्धव गृह प्रवेश – जब किसी परेशानी या किसी आपदा के चलते घर को छोड़ना पड़ता है और कुछ समय पश्चात दोबारा उस घर में प्रवेश किया जाता है तो वह द्वान्धव गृह प्रवेश कहलाता है।

सबसे पहले गृह प्रवेश के लिये दिन, तिथि, वार एवं नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए, गृह प्रवेश की तिथि और समय का निर्धारण किया जाना चाहिए। गृह प्रवेश के लिये शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना बहुत ही आवश्‍यक है। पूजा, व्रत और मंत्र उच्चारण के साथ गृह प्रवेश होता है। माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ माह को गृह प्रवेश के लिये सबसे सही समय बताया गया है। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, पौष इसके लिहाज से शुभ नहीं माने गए हैं। मंगलवार के दिन भी गृह प्रवेश नहीं किया जाता । विशेष परिस्थितियों में रविवार और शनिवार के दिन भी गृह प्रवेश वर्जित माना गया है। सप्ताह के बाकी दिनों में से किसी भी दिन गृह प्रवेश किया जा सकता है। अमावस्या व पूर्णिमा को छोड़कर शुक्लपक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12 और 13 तिथियां प्रवेश के लिये बहुत शुभ मानी जाती हैं।

गृह वास्तु शांति पूजा

वास्तु का अर्थ है, एक ऐसा स्थान जहाँ भगवान तथा मनुष्य एक साथ रहते हैं। हमारा शरीर पांच मुख्य तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना हुआ है। वास्तु का सम्बन्ध इन पाँचों तत्वों से ही माना जाता है। कई बार ऐसा होता है, कि हमारा घर हमारे शरीर के अनुकूल नहीं होता है। तब यह हमें प्रभावित करता है, तथा इसे वास्तु दोष कहा जाता है।

कई बार हम यह महसूस करते हैं, कि घर में क्लेश रहता है या फिर हर रोज कोई न कोई नुक्सान होता रहता है। किसी भी कार्य को पूर्ण होने में कई प्रकार के कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घर में मन अस्थिर रहता है। एक नकारात्मकता की मौजूदगी महसूस होती है। इन सब परिस्थितियों के पीछे वास्तु संबंधित दोष हो सकते हैं। हम माने या न माने लेकिन वास्तु की हमारे जीवन में बहुत अहम भूमिका है। यह हर रोज हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा होता है। घर में मौजूद इन्हीं वास्तु दोषों को दूर करने हेतु जो पूजा की जाती है, उसे वास्तु शांति पूजा कहते हैं। मान्यता है कि वास्तु शांति पूजा करने  से घर की सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं, तथा घर में सुख-समृद्धि आती है।

नवीन घर का प्रवेश उत्तरायण सूर्य में वास्तु पूजन करके ही करना चाहिए। उसके पहले वास्तु का जप यथाशक्ति करा लेना चाहिए। शास्त्रानुसार गृह प्रवेश के लिए माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ, आदि मास शुभ बताए गये हैं। माघ महीने में प्रवेश करने वाले को धन का लाभ होता है। जो व्यक्ति अपने नये घर में फाल्गुन मास में वास्तु पूजन कराता है, उसे पुत्र-पौत्र और धन प्राप्ति दोनों होती है। चैत्र मास में नवीन घर में रहने के लिये जाने वाले को धन का अपव्यय सहना पड़ता है। गृह प्रवेश बैशाख माह में करने वाले को धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती। जो व्यक्ति पशुओं एवं पुत्र का सुख चाहता हो, ऐसे व्यक्ति को अपने नये मकान मे ज्येष्ठ माह में गृह प्रवेश करना चाहिए। बाकी के महीनों में वास्तु पूजन व गृह प्रवेश से साधारण फल प्राप्त होता है। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर कृष्णपक्ष की दशमी तिथि तक वास्तु अनुसार गृह प्रवेश वंश वृद्धिदायक माना गया है। धनु, मीन के सूर्य यानी मलमास में भी नये मकान में प्रवेश नहीं करना चाहिए। पुराने मकान को जो व्यक्ति नया बनाता है, तथा वापस अपने पुराने मकान में जाना चाहे, तो उस समय उपरोक्त बातों पर विचार नहीं करना चाहिए। यदि मकान का द्वार दक्षिण दिशा में हो तो गृह प्रवेश प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी आदि तिथियों में करना चाहिए। दूज ,सप्तमी और द्वादशी तिथि को पश्चिम दिशा के द्वार का गृह प्रवेश श्रेष्ठ बतलाया गया है l

गृहशांति या वास्‍तु पूजन न करवाने से हानियां 

  • गृहवास्तु दोषों के कारण गृह निर्माता को तरह-तरह की विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।
  • यदि गृहप्रवेश के पूर्व गृहशांति पूजन नहीं किया जाए तो बुरे स्वप्न आते हैं, अकालमृत्यु, अमंगल, संकट आदि का भय हमेशा रहता है।
  • गृहनिर्माता को भयंकर ऋणग्रस्तता का सामना करना पड़ता है तथा उस ऋण से छुटकारा भी जल्दी नहीं मिलता, ऋण बढ़ता ही जाता है।
  • घर का वातावरण हमेशा कलहयुक्‍त एवं अशांतिपूर्ण रहता है। घर में रहने वाले लोगों के मन में मनमुटाव बनी रहती है। वैवाहिक जीवन भी सुखमय नहीं होता।
  • उस घर के लोग हमेशा किसी न किसी बीमारी से पीड़ित रहते हैं, तथा वह घर हमेशा के लिए बीमारियों का आश्रय बन जाता है।
  • गृहनिर्माता को पुत्रों से वियोग आदि संकटों का सामना करना पड़ सकता है।
  • जिस गृह में वास्तु दोष आदि होते हैं, उस घर में बरक्कत नहीं रहती अर्थात् धन टिकता नहीं है। आय से अधिक खर्च होने लगता है।

 गृहशांति पूजन करवाने से लाभ 

  • यदि गृहस्वामी गृहप्रवेश के पूर्व गृहशांति पूजन संपन्न कराता है, तो वह सदैव सुख प्राप्त करता है तथा लक्ष्मी का स्थाई निवास रहता है। गृह निर्माता को धन से संबंधित ऋण आदि की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता ।
  • घर का वातावरण भी शांति तथा सुकून प्रदान करने वाला होता है तथा बीमारीयों से बचाव होता है।
  • घर मे रहने वाले लोग प्रसन्नता, आनंद आदि का अनुभव करते हैं।
  • किसी भी प्रकार के अमंगल, अनिष्ट आदि होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
  • घर में देवी-देवताओं का वास होता है, तथा उनके प्रभाव से भूत-प्रेतादि की बाधाएं नहीं होती एवं उनका जोर नहीं चलता।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
× Hi.