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हाेली :: भारतीय संस्‍कृति का दर्पण

 

फाल्गुन पूर्णिमा केवल होलिका दहन और होली तक सीमित नहीं है, बल्कि इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान शिव, भगवान विष्णु, कामदेव, माता अन्नपूर्णा और चित्रगुप्त जी की भी पूजा होती है। इस दिन व्रत, कथा और दान का विशेष महत्व होता है, जिससे यह दिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत शुभ माना जाता है।

 

पूर्णिमा शुक्लपक्ष की 15वीं तिथि होती है, यानि पक्ष का आखिरी दिन। इस दिन चंद्रमा पूर्ण और अपनी 16 कलाओं वाला होता है। इस तिथि को धर्मग्रंथों में पर्व कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इस दिन किए गए दान और उपवास से अक्षय फल प्राप्त होता है।

 

वसंतोत्सव पर्व फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि वसंत ऋतु के दौरान आती है। इसलिए इसे वसंतोत्सव भी कहा जाता है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है। कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन समुद्र मंथन से माता श्रीलक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन भारतवर्ष के कुछ जगहों पर लक्ष्मी जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योतिष में पूर्णिमा का महत्व सूर्य से चन्द्रमा का अन्तर जब 169 से 180 तक होता है, तब पूर्णिमा तिथि होती है। इसके स्वामी स्वयं चन्द्र देव ही हैं। पूर्णिमान्त काल में सूर्य और चन्द्र एकदम आमने-सामने होते हैं। यानी इन दोनों ग्रहों की स्थिति से समसप्तक योग बनता है। पूर्णिमा का विशेष नाम सौम्या है। यह पूर्णा तिथि है। यानि पूर्णिमा पर किए गए शुभ कार्यों  का पूरा फल प्राप्त होता है। ज्योतिष ग्रंथों में पूर्णिमा तिथि की दिशा वायव्य बताई गई है।

 

हर महीने की पूर्णिमा पर्व होता है। पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह आने वाली वह तिथि होती है जब चंद्रमा पूर्ण रूप से प्रकाशित होता है। यह दिन विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है और इसका प्रभाव समुद्र, मानसिक शांति तथा ऊर्जा चक्रों पर विशेष रूप से पड़ता है।

 

वेदों में भी पूर्णिमा का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में चंद्रमा को मन और जल से जोड़ा गया है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण ऊर्जा के साथ होता है, जिससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। ऋग्वेद में कहा गया है:
सोमस्य राज्ञो वरुणस्य बंधुः, पूर्णेन्दुः सर्वमप्यच्छति।”
(अर्थ: पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव की कृपा से समस्त संसार सुख-शांति प्राप्त करता है।)

यजुर्वेद में चंद्रमा को सोम कहा गया है, यह वही सोम है, जोकि अमृत का स्रोत है।

 

इसके अतिरिक्‍त पुराणों में भी पूर्णिमा की महिमा वर्णित हैं।

🔹 भागवत पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी जी और श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

🔹 स्कंद पुराण में कहा गया है कि पूर्णिमा का व्रत रखने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।

🔹 ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है कि पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और जप करने से मनुष्य को मोक्ष मिलता है।

🔹 पद्म पुराण में वर्णित है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है।.

 

  • महाभारत में कहा गया है:

    पूर्णिमायां तु यः स्नाति, सर्वपापैः प्रमुच्यते।”

    (अर्थ: पूर्णिमा के दिन जो स्नान करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।)

  • विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है:

    पूर्णिमा व्रतं यस्तु करोति श्रद्धयान्वितः। स याति परमं स्थानं, विष्णुलोके सदा वसेत्॥”

    (अर्थ: जो श्रद्धा से पूर्णिमा का व्रत करता है, वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है।)

 

हिन्‍दु पंचांग के अनुसार बारह महीने में 12 पुर्णिमा तिथि आती हैं। प्रत्‍येक पूर्णिमा तिथ‍ि अपने में विशेषता धारण किये हुए है।

 

  • चैत्र पूर्णिमा – हनुमान जयंती
  • वैशाख पूर्णिमा – बुद्ध पूर्णिमा
  • ज्येष्ठ पूर्णिमा – वट सावित्री व्रत
  • आषाढ़ पूर्णिमा – गुरु पूर्णिमा
  • श्रावण पूर्णिमा – पर रक्षाबंधन
  • भाद्रपद पूर्णिमा – उमा माहेश्वर व्रत
  • अश्विन पूर्णिमा – शरद पूर्णिमा
  • कार्तिक पूर्णिमा – गुरु नानक जयंती
  • अग्रहायण पूर्णिमा – दत्तात्रेय जयंती
  • पौष पूर्णिमा – शाकंभरी जयंती
  • माघ पूर्णिमा – संत रविदास जयंती
  • फाल्गुन पूर्णिमा – होलिका दहन पर्व (होली)

 

फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली के अतिरिक्‍त कई अन्य महत्वपूर्ण पर्व और त्योहार भी मनाए जाते हैं। ये त्योहार धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।

·         माता लक्ष्मी जयंती – फाल्गुन पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के प्राकट्य दिवस के रूप में लक्ष्मी जयंती मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। व्यापारी वर्ग और गृहस्थ लोग इस दिन व्रत रखकर माता लक्ष्मी से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

·         भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप पूजन – कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन पूर्णिमा को अर्धनारीश्वर पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के अर्धनारीश्वर स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना होती है।

·         कामदहा त्रयोदशी / कामदहन – फाल्गुन पूर्णिमा को ही कामदेव और देवी रति का विशेष पूजन किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने इसी दिन अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था, जिसे कामदहन कहा जाता है।

·         अन्नपूर्णा जयंती – कुछ स्थानों पर इस दिन माता अन्नपूर्णा का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। माता अन्नपूर्णा को अन्न और समृद्धि की देवी माना जाता है, और इस दिन विशेष रूप से अन्नदान का महत्व होता है।

·         श्री सत्यनारायण व्रत और कथा – फाल्गुन पूर्णिमा को श्री सत्यनारायण व्रत का भी विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की कथा का आयोजन किया जाता है और घर में सुख-शांति के लिए पूजा की जाती है।

·         जनजातीय होली उत्सव – भगोरिया पर्व – मध्यप्रदेश और राजस्थान के भील जनजातीय समुदाय भगोरिया उत्सव मनाते हैं। यह पर्व प्रेम, मेल-मिलाप और नई शुरुआत का प्रतीक होता है।

·         धवलक / रंग पंचमी की शुरुआत – कुछ स्थानों पर फाल्गुन पूर्णिमा से ही रंग पंचमी के उत्सव की शुरुआत हो जाती है, जिसमें रंगों और गुलाल से खेलना प्रारंभ होता है।

 

पूर्णिमा तिथि केवल एक चंद्र तिथि नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। इस दिन ध्यान, दान, जप और पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह दिन व्यक्ति को आत्मिक उन्नति और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। होली केवल रंगों का पर्व नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और कृषि से जुड़े जीवन मूल्यों को भी दर्शाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द्र, और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। हिंदू संस्कृति में इसका अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, जो हमें एकता, भाईचारे और खुशहाली का संदेश देता है।

 

 

 

1 thought on “हाेली :: भारतीय संस्‍कृति का दर्पण”

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