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“मौनी अमावस्या: धर्म, संस्कृति और अध्यात्म की गूंज”

 

माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। यह योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मुनि ऋषि का जन्म हुआ था, इस नाते मुनि शब्द से ही मौनी शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है। इस दिन सूर्य उपासना, पितृ तर्पण, और दान-पुण्य के कार्य करने से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन मन में ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, ‘ओम खखोल्काय नम:’ और ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र के जाप का विशेष विधान है।

मौनी अमावस्‍या के दिन संगम में स्नान के संदर्भ में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है, वह है सागर मंथन की कथा। कथा के अनुसार जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलक कर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में जा गिरी। यही कारण है कि यहाँ की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। यह तिथि अगर सोमवार के दिन पड़ती है तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। अगर सोमवार हो और साथ ही महाकुम्भ लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से, कलियुग में दान से, लेकिन माघ मास में संगम स्नान हर युग में अन्नंत पुण्यदायी होगा। इस तिथि को पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अपने सामर्थ के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण जो भी आपकी इच्छा हो दान देना चाहिए। इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है अर्थात मौन अमवस्या। चूंकि इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है। शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। इसी तिथि को संतों की भांति चुप रहें तो उत्तम है। अगर संभव नहीं हो तो अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें। इस तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा का विधान है। मौनी अमावस्‍या के दिन पीपल में अर्घ्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा का मिलन अपने आप में महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य में व्याप्त अग्नि तत्व और चन्द्रमा में व्याप्त सोम तत्व यानी शीतलता, दोनों मिलकर इस संसार का सृजन करते हैं। जैसे विद्युत उपकरणों को चलाने के लिए विद्युत ऊर्जा में गर्म और ठंडा, दोनों ऊर्जाओं का एक साथ उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार इस सृष्टि में अग्नि तत्व और सोम तत्व के मिलने से सब कार्य निर्विघ्नता पूर्ण सम्पन्न होते हैं।
माघ मास की अमावस्या के दिन चन्द्रमा के सोम तत्व और सूर्य के अग्नि तत्व का समावेश मकर राशि में होने से ब्रह्मांड की शुभ ऊर्जा का संचार,  स्नान, दान एवं मौन व्रत के माध्यम से जनमानस में होता है। ग्रहराज सूर्य और ग्रहरानी चन्द्रमा का मिलन मकर राशि में अमावस्या के दिन होने से प्राणदायिनी ऊर्जा का सृजन जल में होता है। पवित्र नदियों के पावन जल में स्नान करने से जहां शरीर का शुद्धिकरण होता है, वहीं मौन व्रत धारण कर दान-पुण्य करने से मन की अशुद्धियां दूर होती हैं। चित्त की शुद्धि होने पर ईश्वर का चिंतन मनुष्य की समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है। इस हेतु धर्म शास्त्रों में वर्णित विधि-विधानों का पालन शंका रहित होकर समर्पण भाव से करने पर कल्याण होता है।

मौनी अमावस्या का अर्थ:
  • मौनी” शब्द का अर्थ है मौन। इस दिन मौन रहकर आत्मचिंतन और ईश्वर का ध्यान करना शुभ माना जाता है।
  • अमावस्या” का अर्थ है चंद्रमा का वह दिन जब वह आकाश में दिखाई नहीं देता। इसे पितरों और तपस्या के लिए उपयुक्त दिन माना जाता है।
हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या का महत्व:
  1. आध्यात्मिक शुद्धि:
    • इस दिन गंगा स्नान और ध्यान करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त होता है।
    • इसे आत्मशुद्धि का पर्व माना जाता है।
  2. पितरों का तर्पण:
    • मौनी अमावस्या पर पितरों को जल और तर्पण अर्पित करना पुण्यदायी माना जाता है।
    • यह दिन पितृ दोष निवारण के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  3. दान और पुण्य का दिन:
    • इस दिन दान, जैसे तिल, आटा, चावल, वस्त्र और अन्न दान करने से विशेष फल मिलता है।
    • गौ दान, अन्न दान और गरीबों को भोजन कराने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर माना जाता है।
  4. सूर्य पूजा:
    • माघ मास में सूर्य उत्तरायण होता है। मौनी अमावस्या पर सूर्य देव की उपासना से रोगों और कष्टों का निवारण होता है।
मौनी अमावस्या को कैसे मनाना चाहिए?
  1. स्नान विधि:
    • सूर्योदय से पहले पवित्र नदी या घर के स्नानघर में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
    • स्नान के दौरान पवित्र मंत्रों का जाप करें।
    • स्नान के बाद सूर्य को जल अर्पित करें।
  2. मौन व्रत:
    • पूरे दिन मौन रहकर आत्मचिंतन और ईश्वर का ध्यान करें।
    • यदि मौन रहना संभव न हो, तो कम से कम व्यर्थ की बातों से बचें।
  3. पितृ तर्पण:
    • अपने पितरों के लिए जल अर्पित करें और तर्पण की विधि अपनाएं।
    • “ॐ पितृभ्यः नमः” मंत्र का उच्चारण करें।
  4. दान:
    • तिल, गुड़, कंबल, वस्त्र, अन्न और अन्य आवश्यक वस्तुएं गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें।
    • गोमाता को हरी घास खिलाएं और पक्षियों को अन्न डालें।
  5. जप और ध्यान:
    • इस दिन भगवान विष्णु, शिव तथा सूर्य देव की पूजा करें।
    • “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करें।
  6. विशेष भोजन:
    • इस दिन सात्विक भोजन करें। तिल और गुड़ से बने व्यंजनों का सेवन करें।
  7. संध्या आरती:
    • संध्या समय दीप जलाएं और अपने घर में पवित्रता बनाए रखें।
मौनी अमावस्या के लाभ:
  1. पापों का नाश:
    • गंगा स्नान और दान से पिछले जन्मों और इस जन्म के पापों का नाश होता है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति:
    • मौन व्रत और ध्यान से आत्मा की शुद्धि होती है और आध्यात्मिक प्रगति मिलती है।
  3. पितृ दोष का निवारण:
    • पितरों को तर्पण और जलदान से पितृ दोष समाप्त होता है।
  4. सुख और समृद्धि:
    • इस दिन किए गए दान-पुण्य से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  5. मानसिक शांति:
    • मौन और ध्यान से मन की अशांति दूर होती है और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
मौनी अमावस्या पर ध्यान रखने योग्य बातें:
  1. किसी भी प्रकार के अपवित्र विचार या क्रोध से बचें।
  2. सात्विक भोजन करें और मांस-मदिरा से दूर रहें।
  3. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  4. इस दिन झूठ न बोलें और विवादों से बचें।
  5. दान-पुण्य को यथाशक्ति करें।
मौनी अमावस्या का पालन पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और ईश्‍वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

 

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