नवरात्रि 2024 : कलश स्थापन मुहुर्त व माता के रूप
महालय अमावस्या
महालय हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष के अंतिम दिन को कहा जाता है। इसे महालय अमावस्या या सिर्फ महालय के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और पितरों का तर्पण करने के लिए विशेष माना जाता है। महालय के दिन पूजा, तर्पण, पिंडदान और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति व आध्यात्मिक लोक में उन्नति को प्राप्त करते हैं और परिवार पर सदैव उनकी कृपा बनी रहती है। महालय के अगले दिन से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है।
महालय 2024 में शुभ मुहूर्त:
2024 में महालय 2 अक्टूबर को है। तर्पण और श्राद्ध करने के लिए महालय अमावस्या के दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार होगा:
- अमावस्या तिथि प्रारंभ: 1 अक्टूबर 2024 को दोपहर 04:35 बजे
- अमावस्या तिथि समाप्त: 2 अक्टूबर 2024 को दोपहर 03:20 बजे
शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ
आश्विन माह में मनाई जाने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इसकी शुरुआत प्रतिवर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इस बार 3 अक्तूबर 2024 से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। इसका समापन 11 अक्तूबर 2024 को नवमी पर होगा। वहीं 12 अक्तूबर को दशहरा मनाया जाएगा। आश्विन माह के ये नौ दिन मां दुर्गा की पूजा को समर्पित है। इस अवधी में माता रानी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि का वास और धन-धान्य में वृद्धि होती है।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना का विधान है। इससे देवी प्रसन्न होती हैं, और हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार कलश को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और मातृगण का निवास बताया गया है। इसकी स्थापना करने से जातक को शुभ परिणामों की प्राप्ति होती हैं। इस बार नवरात्रि के पहले दिन ऐन्द्र योग के साथ-साथ हस्त नक्षत्र का संयोग रहेगा। ऐसे में कलश स्थापना करना और भी शुभ माना जा रहा है।
क्या है ऐन्द्र योग और हस्त नक्षत्र तथा उन दोनों के योग का प्रभाव
ऐन्द्र योग और हस्त नक्षत्र दोनों ही ज्योतिष में विशेष महत्व रखते हैं, क्योंकि ये जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इनका सम्मिलन विशेष रूप से शक्तिशाली होता है और इसका परिणाम व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्थिति पर पड़ता है।
1. ऐन्द्र योग का महत्व:
ऐन्द्र योग नवम योगों में से एक है, और इसका संबंध भगवान इंद्र से है, जो देवताओं के राजा हैं। यह योग व्यक्ति के जीवन में शक्ति, प्रतिष्ठा, वैभव और नेतृत्व के गुणों को दर्शाता है। ऐन्द्र योग वाले जातक नेतृत्व क्षमता में प्रबल होते हैं और उन्हें उच्च पद प्राप्त होता है। यह योग साहस, उन्नति, और संघर्षों में विजय का संकेत देता है। इसके साथ ही, यह योग लोगों को समाज में एक विशेष स्थान दिलाने में मदद करता है। ऐन्द्र योग के दौरान किए गए कार्य सफल होते हैं, और व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान मिलता है।
2. हस्त नक्षत्र का महत्व:
हस्त नक्षत्र चंद्रमा के 27 नक्षत्रों में से 13वां नक्षत्र है और इसे ज्योतिष में अत्यधिक शुभ माना जाता है। इसका स्वामी ग्रह चंद्रमा है, और यह नक्षत्र शिल्पकारी, हस्तकला, कुशलता, और कला से जुड़े कार्यों के लिए विशेष होता है। हस्त नक्षत्र का प्रतीक हाथ (हस्त) है, जो इस नक्षत्र से प्रभावित लोगों को कुशल, मेहनती और रचनात्मक बनाता है। इस नक्षत्र के अंतर्गत जन्मे लोग व्यवसाय, कला, कारीगरी, और चिकित्सा में निपुण होते हैं। यह नक्षत्र मानसिक स्थिरता, सामंजस्य और धैर्य का प्रतीक है, और इसका प्रभाव व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।
3. ऐन्द्र योग और हस्त नक्षत्र का सम्मिलन:
जब ऐन्द्र योग और हस्त नक्षत्र एक साथ होते हैं, तो यह संयोजन विशेष रूप से शक्तिशाली और शुभ माना जाता है। इस योग और नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति को नेतृत्व क्षमता, प्रतिष्ठा, और रचनात्मकता में वृद्धि करता है। यह योग व्यक्ति को शारीरिक रूप से शक्तिशाली और मानसिक रूप से कुशल बनाता है। साथ ही, इस समय किए गए कार्य सफल होते हैं, और व्यक्ति को मान-सम्मान और आर्थिक उन्नति मिलती है।
इस तरह, ऐन्द्र योग और हस्त नक्षत्र का साथ आना सफलता, सम्मान, और रचनात्मकता के लिए एक विशेष और शुभ समय होता है, खासकर जब व्यक्ति किसी नए कार्य या योजना की शुरुआत करता है।
शारदीय नवरात्रि 2024 में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 03 अक्टूबर, 2024 को रात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 04 अक्टूबर को मध्य रात्रि 02 बजकर 58 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार 03 अक्टूबर को होगी और घटस्थापना भी इसी दिन की जाएगी। इस दौरान घट स्थापना का शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहने वाला है –
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घटस्थापना मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 15 मिनट से 07 बजकर 22 मिनट तक
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घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक
नवरात्रि का पदार्पण ऐसे समय में होता है, जब प्रकृति नई ऊर्जा से भरी होती है। प्राणियों में भी यह ऊर्जा स्फूर्ति, उल्लास और क्रियाशीलता बनकर परिलक्षित होती है। लेकिन यदि हम उसे सकारात्मक रूप में क्रियान्वित नहीं कर पाते, तो शक्ति होने के बावजूद भी उस ऊर्जा को नकारात्मकता की ओर मोड़ देते हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, मां दुर्गा समस्त प्राणियो में चेतना, बुद्धि, स्मृति, धृति, शक्ति, शांति श्रद्धा, कांति, तुष्टि, दया आदि अनेक रूपों में स्थित हैं। अपने भीतर स्थित इन देवियों को जगाना हमें सकारात्मकता की ओर ले जाता है। भगवान श्रीराम ने शक्ति की उपासना कर बलशाली रावण पर विजय पाई थी। जबकि ‘देवी पुराण’ में उल्लेख है कि रावण शिव के साथ-साथ शक्ति का भी आराधक था। उसने मां दुर्गा से बलशाली होने का वरदान पा रखा था। लेकिन शक्ति ने राम का साथ दिया, क्योंकि रावण अपने भीतर सद्गुण रूपी देवियों को जगा नहीं पाया। तुष्टि, दया, शांति आदि के अभाव में उसका अहंकार प्रबल हो गया। इसलिए देवी की आराधना का एक अर्थ यह भी है कि आप एक ऐसे इंसान बनें, जिसमें शक्ति के साथ- साथ करुणा, दया, चेतना, बुद्धि, तुष्टि आदि गुण भी हों। देवी के रूपों में मां दुर्गा को राक्षसों से संघर्ष करते हुए दिखाया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि हम कठिनाइयों (जो वास्तव में राक्षस जैसी ही प्रतीत होती हैं) से हिम्मत हारने के बजाय उनसे संघर्ष करें। नवरात्र तीन शक्तियों महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की उपासना का पर्व भी माना जाता है। ये भी हमारी तीन शक्तियां हैं, जिन्हें इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति कह सकते हैं। मां दुर्गा से यही प्रार्थना है कि हमसभी अपने अंदर निहित इन शक्तियों को निखार कर मानवहित हेतु नवीन वातावरण का सृजन करें।
मां दुर्गा के आगमन (आवागमन) और प्रस्थान (विग्रह गमन) की सवारी का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं और पौराणिक मान्यताओं के आधार पर किया जाता है। यह मुख्यतः नवरात्रि के पहले दिन और विजयादशमी (दशहरा) के दिन ग्रहों की स्थिति और सप्ताह के दिन पर आधारित होता है।
मां भगवती के आगमन और प्रस्थान
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे। नौकायां कार्यसिद्धिस्यात् दोलायों मरणधु्रवम्॥ ( देवीपुराण)
आगमन विचार :-
रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं, शनि और मंगल वार को घोड़े पर, बृहस्पति और शुक्रवार को डोला पर, बुधवार को नाव पर आती हैं। अर्थात् मां दुर्गा के हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है, घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है। नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्ध मिलती है और यदि डोले पर आती है तो उस वर्ष में अनेक कारणों से बहुत लोगों की अकाल मृत्यु होती है।
- सोमवार या रविवार: हाथी पर आगमन (समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक)
- मंगलवार या शनिवार: घोड़ा पर आगमन (संघर्ष, युद्ध और उथल-पुथल का संकेत)
- बुधवार: नौका पर आगमन (शांति और समृद्धि का प्रतीक, जल संबंधी लाभ)
- गुरुवार या शुक्रवार: डोली पर आगमन (समय का परिवर्तन और सजीवता का संकेत)
गमन (जाने)विचार:-
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा, शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा, सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
मां भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती है जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है। शनि और मंगल को पैदल जाती हैं जिससे विकलता की वृद्धि होती है। बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं। इससे वृष्टि वृद्धि होती है। बृहस्पति वार को भगवती मनुष्य की सवारी से जाती हैं। जो सुख और समृद्धि की वृद्धि करती है। इस प्रकार भगवती का आना जाना शुभ और अशुभ फल सूचक हैं। इस फल का प्रभाव यजमान पर ही नहीं, पूरे राष्ट्र पर पड़ता हैं।
यह गणनाएं मान्यताओं पर आधारित हैं और भक्तों द्वारा इनकी प्रतीक्षा की जाती है, ताकि उस वर्ष की संभावनाओं को समझा जा सके।
:: नवरात्रि के नौ दिन और उसके तीन गुण ::
सनातन संस्कृति की जड़ें मानव जीवन के प्रणाली और पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य तथा ईश्वर के विभिन्न पहलुओं के साथ, इसके संबंधों के गहन अवलोकन पर आधारित हैं। यह इस बात से भी परिलक्षित होता है कि हम अपने त्योहार कब और कैसे मनाते हैं, उनके मनाने के पीछे हमारी क्या सांस्कृतिक अवधारणा है और क्या आध्यात्मिक लाभ हैं।
नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है “नौ रातें।” इन नौ रातों की गिनती अमावस्या या अमावस्या के अगले दिन से की जाती है। चंद्र चक्र के इन पहले नौ दिनों को स्त्रीलिंग माना जाता है। यह देवी के लिए एक विशेष समय है, जो ईश्वर की स्त्री प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है। नौवें दिन को नवमी कहा जाता है। पूर्णिमा के आसपास का डेढ़ दिन एक तटस्थ समय होता है। शेष अठारह दिन पुरुष प्रधान होते हैं। महीने का स्त्री चरण देवी से संबंधित है। इसीलिए इस परंपरा में नवमी तक की सारी पूजायें देवी को समर्पित होती है। एक वर्ष में बारह नौ दिन की अवधि होती है और इनमें से प्रत्येक स्त्री दैवीय या देवी के एक अलग पहलू पर केंद्रित है। अक्टूबर के आसपास आने वाली नवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह विद्या की देवी शारदा को समर्पित है। एक इंसान जो कई कार्य को करने में समर्थ हो सकता है, उनमें से सीखने की प्रक्रिया पर यह परंपरा सबसे अधिक बल देती है। अन्य प्राणी हमसे अधिक तेज़ दौड़ सकते हैं; वे हमसे अधिक शक्तिशाली हैं; वे बहुत सी चीजें कर सकते हैं जो हम मानव नहीं कर सकते – लेकिन वे हमारी तरह सीख नहीं सकते। मनुष्य होने का गौरव यह है कि आप कुछ भी सीख सकते हैं – अगर आप चाहें तो या आपकी इच्छाशक्ति उतनी सशक्त हो तो।
नवरात्रि का महत्व – स्त्रीत्व का समय
जब हम “पुल्लिंग” और “स्त्रीलिंग” कहते हैं, तो हम लिंग के बारे में बात नहीं कर रहे होते हैं; हम अस्तित्व के मूल गुणों, ध्रुवताओं के बारे में बात कर रहे हैं। भौतिक दुनिया केवल ध्रुवों के बीच ही अस्तित्व में रह सकती है – दिन और रात, अंधेरा और प्रकाश, पौरूष और स्त्रैण, और पुरुष और महिला ये सभी एक विपरित घ्रुव हैं। पुरुष और स्त्री पुरुषोचित और स्त्रैण गुणों की अभिव्यक्ति है, अपने आप में कोई गुण या परिमाप नहीं। उत्तर शरद ऋतु स्त्रीत्व का समय माना गया है। चूँकि वर्ष का यह भाग स्वाभाविक रूप से स्त्रीत्व का समर्थन करता है, इसलिए कुछ समाजों ने सचेत रूप से स्त्रीत्व को स्थापित करने हेतु कार्य किया है, क्योंकि पुल्लिंग बिना अधिक प्रोत्साहन के खुद को मुखर कर सकता है। स्त्री को स्वयं को मुखर करने के लिए समर्थन की आवश्यकता होती है – अन्यथा वह पृष्ठभूमि में चली जाती है। किसी भी समाज में यदि स्त्रीत्व पृष्ठभूमि में चला जाए तो वे विजेता बन जायेंगे।
नवरात्रि के नौ दिनों की व्याख्या
दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती को स्त्री के तीन आयामों के रूप में देखा जाता है, जो क्रमशः पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा, या तमस (जड़ता), रजस (गतिविधि, उत्साह) और सत्व (उत्कृष्टता, ज्ञान, पवित्रता) का प्रतीक हैं।
जो लोग ताकत या शक्ति की आकांक्षा रखते हैं, वे धरती माता, दुर्गा या काली जैसे नारी के रूपों की पूजा करते हैं। जो लोग धन, उत्साह या भौतिक उपहार की इच्छा रखते हैं वे लक्ष्मी या सूर्य की पूजा करते हैं तथा जो लोग ज्ञान, विघटन या नश्वर शरीर की सीमाओं के पार जाने की आकांक्षा रखते हैं, वे सरस्वती या चंद्रमा की पूजा करते हैं। इन्हीं मूल गुणों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों का वर्गीकरण किया गया है। पहले तीन दिन दुर्गा को, अगले तीन दिन लक्ष्मी को और अंतिम तीन दिन सरस्वती को समर्पित हैं। दसवां दिन, विजयादशमी, जीवन के इन तीनों पहलुओं पर विजय का प्रतीक है।
यह केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि ऊर्जा स्तर पर भी सत्य है। मनुष्य के रूप में, हम पृथ्वी से उत्पन्न होते हैं और सक्रिय हैं। थोड़ी देर बाद हम एक बार फिर जड़ता में आ जाते हैं। ऐसा न केवल एक व्यक्ति के रूप में हमारे साथ होता है, बल्कि आकाशगंगा और संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ भी होता है। ब्रह्मांड जड़ता की स्थिति से निकलता है, गतिशील हो जाता है, और एक बार फिर जड़ता में समा जाता है। हालाँकि, हमारे पास इस चक्र को तोड़ने की क्षमता है।
देवी के पहले दो आयाम मानव अस्तित्व और कल्याण के लिए आवश्यक हैं। तीसरी है उच्चतर स्थान प्राप्त करने की आकांक्षा, और उससे भी परे जाने की लालसा। यदि आपको सरस्वती को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें प्रयास करना होगा उसकी प्राप्ती हेतु। अन्यथा, हम उस तक नहीं पहुंच सकते।
नवरात्रि के 9 दिन और 3 गुण
इन तीनों आयामों के बिना कोई भी भौतिक इकाई नहीं है। एक भी परमाणु एक निश्चित स्थिर प्रकृति, ऊर्जा और कंपन के इन तीन आयामों से मुक्त नहीं है। इन तीन तत्वों के बिना, हम किसी भी चीज़ को एक साथ नहीं रख सकते; वह बिखर जायेगा. यदि यह सिर्फ सत्व है, तो हम यहां एक क्षण भी नहीं रह पायेंगे। यदि यह सिर्फ रजस है, तो यह काम नहीं करेगा। यदि यह सिर्फ तमस है, तो हम हर समय सोये रहेंगे। ये तीन गुण हर चीज़ में मौजूद हैं। प्रश्न सिर्फ यह है कि हम इन चीज़ों को किस हद तक सामंजस्य बना कर रखते हैं या प्रस्तुत करते हैं।
नवरात्रि के पहले तीन दिनों का महत्व ( तमस )
नवरात्रि के पहले तीन दिन तमस के स्वरूप हैं, जहां देवी दुर्गा और काली की तरह उग्र हैं। तमस पृथ्वी का स्वभाव है और वही जन्म देने वाली है। गर्भ में हम जो गर्भधारण काल बिताते हैं वह तमस है। यह एक ऐसी अवस्था है जो लगभग शीत निद्रा जैसी है, लेकिन हम बढ़ रहे हैं हमारा विकास हो रहा है। तो तमस पृथ्वी और हमारे जन्म का स्वभाव है। हम पृथ्वी पर बैठे हैं. हमें बस उसके साथ एक होकर रहना सीखना चाहिए। वैसे भी हम उसका एक हिस्सा हैं। जब उसकी इच्छा होती है, तो हमें अस्तित्व में ला देती है; जब उसकी इच्छा होती है, तो वह हमें वापस मिटा देती है।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें लगातार अपने शरीर की प्रकृति की याद दिलायी जाये। अभी, हम चारों ओर घूम रहे मिट्टी का एक टीला के समान हैं। जब धरती हमें अपने अंदर समा लेने का फैसला करती है, तो हम बस एक छोटा सा टीला बन जाते हैं या अदृश्य हो जाते हैं।
हमेशा यह अवधारणा होनी ही चाहिए कि चाहे हम कोई भी काम कर रहे हों, हमें हर दिन कम से कम एक घंटे के लिए अपनी उंगलियों को धरती के सम्पर्क में अवश्य रखनी चाहिए। बगीचे में ही कुछ काम करें. इससे हममें यह स्वाभाविक शारीरिक स्मृति बनेगी कि हम नश्वर हैं। हमारे शरीर को पता चल जाएगा कि यह स्थायी नहीं है। किसी व्यक्ति के लिए अपनी आध्यात्मिक खोज पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए शरीर में यह अहसास बेहद महत्वपूर्ण है। यह अहसास जितना जरूरी होता जाता है, आध्यात्मिक समझ उतनी ही मजबूत होती जाती है।
नवरात्रि के मध्य तीन दिनों का महत्व – रजस
एक बार रजस आ जाए तो हम कुछ करना चाहते हैं। एक बार जब हम कुछ करना शुरू करते हैं और अगर कोई जागरूकता और चेतना नहीं है, तो रजस की प्रकृति ऐसी होती है कि जब तक सब अच्छा चल रहा है तब तक यह अच्छा है। जब स्थिति ख़राब हो जाती है, तो रजस अति-बुरा हो जाता है।
राजसिक व्यक्ति में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा होती है। बात सिर्फ इतनी है कि इसे सही तरीके से क्रमबद्ध तरीके से उपयोग करना होता है। हमारे द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक कार्य या तो मुक्ति या उलझाव की प्रक्रिया हो सकता है। यदि हम कोई भी गतिविधि पूरी तत्परता से करते हैं, तो वह गतिविधि सुंदर होती है और हमारे लिए आनंद पैदा करती है। यदि हम किसी भी कारण से अनिच्छा से कोई कार्य करते हैं तो वह कार्य हमारे लिए कष्ट उत्पन्न करता है। हम जो भी कर रहे हैं, भले ही हम सिर्फ झाड़ू ही क्यों न लगा रहे हों, अपने आप को इसमें समर्पित कर दें और इसे पूरी भागीदारी के साथ करें। इतना ही यह मांग करता है।
जब हम किसी चीज़ में पूरी लगन से शामिल होते हैं, तो यहां हमारे लिए कुछ और मौजूद नहीं होता है। उत्साह का मतलब है किसी चीज़ के साथ बेलगाम जुड़ाव। यह कुछ भी हो सकता है – हम उमंग में गा सकते हैं, हम उमंग में नाच सकते हैं, या हम उमंग में चल सकते हैं। जो कुछ भी इस समय हमारे संपर्क में है, हम उससे बहुत प्रभावित होते हैं। हम उमंग में सांस लेते हैं, हम उमंग में चलते हैं, हम उमंग में जीते हैं। हमारा अस्तित्व हर चीज़ के साथ, पूर्ण भागीदारी के साथ है।
नवरात्रि के अंतिम तीन दिनों का महत्व – सत्व
तामसी प्रकृति से सत्व की ओर बढ़ने का मतलब है कि हम शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और ऊर्जा शरीर को परिष्कृत कर रहे हैं शुद्ध कर रहे हैं। यदि हम इसे इतना परिष्कृत कर लें कि यह बहुत पारदर्शी हो जाए, कुछ भी छुपा न हो तो हम सृजन के उस स्रोत को नहीं चूक सकते जो हमारे भीतर है। अभी, यह इतना अपारदर्शी है कि हम देख नहीं सकते। शरीर एक दीवार की तरह बन गया है जो हर चीज़ को रोक रहा है। कुछ इतना अद्भुत – सृजन का स्रोत – यहाँ बैठा है लेकिन यह दीवार इसे रोके रखी है क्योंकि यह बहुत ही अपारदर्शी है। इसे निखारने का समय आ गया है। अन्यथा हमें केवल दीवार का ही पता चलेगा; हमें यह मालूम नहीं चलेगा कि अंदर कौन रहता है।