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:: शारदीय नवरात्रि – शक्ति, भक्ति और आध्‍यात्मिक उन्‍नति का स्रोत ::

शारदीय नवरात्रि का सनातन धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान प्राप्‍त है। यह वह पर्व है, जिसमें देवी दुर्गा की नौ शक्तियों की उपासना की जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से अश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर) के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। “नवरात्रि” का अर्थ है “नौ रातें,” और इस समयावधि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है।

शारदीय नवरात्रि का महत्व:

शारदीय नवरात्रि का सबसे प्रमुख उद्देश्य मां दुर्गा की उपासना और उनके नौ रूपों की पूजा करना है। यह त्योहार शक्ति, साहस, और भक्ति का प्रतीक है। यह समय मां दुर्गा की शक्ति का आह्वान करने और आध्यात्मिक उन्नति का होता है।

शारदीय नवरात्रि का समय शरद ऋतु की शुरुआत से जुड़ा है। इस समय प्रकृति में बदलाव होता है और लोग मौसम में हो रहे परिवर्तन के साथ-साथ अपने शरीर, मन, और आत्मा की शुद्धि के लिए पूजा और व्रत रखते हैं।

नवरात्रि का पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधताओं के धरोहर का भी अभिन्न हिस्सा है। इस दौरान विभिन्न स्थानों पर रामलीला, दुर्गा पूजा पंडाल, गरबा, डांडिया और अन्य सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।

नवरात्रि में लोग व्रत रखते हैं, नौ दिनों तक देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं, देवी के मंत्रों का जाप करते हैं, और देवी दुर्गा की आराधना करते हैं। खासकर, नवमी के दिन कन्या पूजन का आयोजन होता है, जिसमें छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा की जाती है।

मॉं नवदुर्गा के नौ रूप :

शैलपुत्री

पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा होती है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और मां दुर्गा का पहला रूप हैं। यह पूजा आत्मिक शुद्धि और प्रकृति के साथ संबंध का प्रतीक है।

ब्रह्मचारिणी

दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है, जो कठिन तपस्या और भक्ति की देवी हैं। यह पूजा साधक को संयम, तप, और धैर्य सिखाती है।

चंद्रघंटा

तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा होती है, जो साहस, युद्ध, और शक्ति की देवी हैं। इनकी पूजा से साधक के जीवन में साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।

कूष्माण्डा

चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की पूजा होती है, जिन्होंने ब्रह्मांड का निर्माण किया था। इनकी पूजा से साधक के जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार होता है।

स्कंदमाता

पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा होती है, जो भगवान कार्तिकेय की माता हैं। यह पूजा सुख, शांति, और मां के स्नेह को प्राप्त करने के लिए की जाती है।

कात्यायनी

छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा होती है, जो युद्ध की देवी हैं और राक्षसों का विनाश करती हैं। इनकी पूजा से साधक के भीतर साहस और शक्ति का विकास होता है।

कालरात्रि

सातवें दिन कालरात्रि की पूजा होती है, जो अंधकार और बुराई को नष्ट करती हैं। यह पूजा बुराई से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि के लिए की जाती है।

महागौरी

आठवें दिन महागौरी देवी की पूजा होती है, जो पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक हैं। इनकी पूजा से साधक को शांति और संतोष प्राप्त होता है।

सिद्धिदात्री

नवमी के दिन सिद्धिदात्री देवी की पूजा होती है, जो सभी सिद्धियों (आध्यात्मिक शक्तियों) की प्रदाता हैं। इनकी पूजा साधक को आत्मिक उन्नति और सिद्धियों की प्राप्ति कराती है।

शारदीय नवरात्रि से जुड़े पौराणिक कथा और ऐतिहासिक संदर्भ:
महिषासुर वध:

नवरात्रि की सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा महिषासुर नामक असुर से जुड़ी है। महिषासुर ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। सभी देवता मिलकर मां दुर्गा की स्तुति करने लगे और उनसे सहायता की प्रार्थना की। मां दुर्गा ने महिषासुर के साथ नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इस विजय को विजयादशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

रामायण से संबंध:

रामायण के अनुसार, भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले मां दुर्गा की आराधना की थी। उन्होंने देवी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के दौरान पूजा की थी और उनकी कृपा से दशमी के दिन रावण का वध किया था। इसीलिए विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।

शारदीय नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा और अनुष्ठान:

कलश स्थापना (घटस्थापना):

नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है, जिसमें कलश की स्थापना की जाती है। इसे नवदुर्गा की प्रतीकात्मक रूप से बुलाने की प्रक्रिया माना जाता है।

व्रत और उपवास:

नवरात्रि के दौरान लोग उपवास रखते हैं और सात्विक आहार ग्रहण करते हैं। उपवास का उद्देश्य साधक के शरीर और मन को शुद्ध करना होता है।

गरबा और डांडिया:

विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान में नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया नृत्य का आयोजन होता है, जो शक्ति की उपासना और सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक हैं।

कन्या पूजन:

नवरात्रि के अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन का आयोजन होता है, जिसमें नौ कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा की जाती है। इन्हें भोजन कराया जाता है और उपहार दिए जाते हैं।

विजयादशमी:

नवरात्रि के अंतिम दिन विजयादशमी मनाई जाती है, जिसे दशहरा भी कहा जाता है। यह दिन रावण पर भगवान राम की विजय का प्रतीक है और महिषासुर के वध का भी प्रतीक माना जाता है।

श्री दुर्गासप्तशती (या देवी महात्म्यम) हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है, जो देवी दुर्गा की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन करता है। इसमें 700 श्लोक हैं और इसे 13 अध्यायों में विभाजित किया गया है।

श्री दुर्गासप्तशती की संक्षिप्त कहानी (अध्याय क्रम अनुसार):
  1. प्रथम अध्याय: मदु और कैटभ का वध

    भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, तब उनके कानों से दो असुर मधु और कैटभ उत्पन्न होते हैं। ये ब्रह्माजी का वध करने के लिए प्रयास करते हैं। ब्रह्माजी देवी महा माया का आह्वान करते हैं, जो विष्णु को जगाती हैं। भगवान विष्णु दोनों असुरों का वध करते हैं।

  2. द्वितीय अध्याय: महिषासुर से युद्ध की शुरुआत

    महिषासुर नामक असुर स्वर्ग पर कब्जा कर लेता है। सभी देवता मिलकर अपनी शक्तियों से देवी दुर्गा को प्रकट करते हैं। दुर्गा माता महिषासुर से युद्ध करने के लिए जाती हैं।

  3. तृतीय अध्याय: महिषासुर वध

    दुर्गा माता और महिषासुर के बीच लंबा युद्ध होता है। अंत में देवी दुर्गा महिषासुर का वध करती हैं। इस अध्याय में देवी की शक्ति और धैर्य का वर्णन किया गया है।

  4. चतुर्थ अध्याय: देवताओं द्वारा देवी की स्तुति

    महिषासुर के वध के बाद, सभी देवता देवी दुर्गा की स्तुति करते हैं और उनकी महिमा का गुणगान करते हैं।

  5. पंचम अध्याय: शुंभ और निशुंभ की कथा

    शुंभ और निशुंभ नामक असुर स्वर्ग पर कब्जा कर लेते हैं और देवी की सुंदरता से मोहित हो जाते हैं। वे देवी दुर्गा को अपने पास बुलाने का प्रयास करते हैं, लेकिन देवी उनका निमंत्रण अस्वीकार करती हैं। तब युद्ध होता है।

  6. षष्ठम अध्याय: चंड और मुण्ड का वध

    चंड और मुण्ड नामक असुरों को देवी दुर्गा की सहायक काली देवी द्वारा मार दिया जाता है। इसीलिए काली को चामुंडा कहा जाता है।

  7. सप्तम अध्याय: रक्तबीज का वध

    असुर रक्तबीज का रक्त धरती पर गिरने से कई और रक्तबीज उत्पन्न होते हैं। देवी काली उसकी रक्त बूंदों को पीकर उसे मार डालती हैं।

  8. अष्टम अध्याय: निशुंभ का वध

    निशुंभ के साथ देवी का भीषण युद्ध होता है और अंत में देवी निशुंभ का वध करती हैं।

  9. नवम अध्याय: शुंभ का वध

    अंतिम युद्ध शुंभ के साथ होता है। देवी दुर्गा शुंभ का वध करती हैं, और सभी देवताओं को उनका राज्य और वैभव लौटता है।

  10. दशम से तेरहवां अध्याय: देवी की स्तुति और आशीर्वाद

    अंतिम अध्यायों में देवताओं द्वारा देवी की भक्ति और स्तुति की जाती है, और देवी सभी को आशीर्वाद देती हैं। देवी यह वचन देती हैं कि जब-जब संसार में बुराई और अधर्म फैलेगा, तब-तब वे अपने रूप में अवतरित होंगी और धर्म की रक्षा करेंगी।

नवरात्रि में विशेष पूजा:
  1. महा निशा पूजा

    नवरात्रि की अष्टमी रात्रि को महा निशा पूजा का विशेष महत्व होता है। इस पूजा का उद्देश्य साधक के भीतर की नकारात्मक ऊर्जा और अंधकार को समाप्त करना है। महा निशा पूजा देवी काली की आराधना के लिए की जाती है, जो प्रचंड और तामसिक ऊर्जा को नियंत्रित करती हैं।

  2. नवमी पूजा

    नवमी का दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है, जो नवरात्रि का अंतिम दिन होता है। यह पूजा अत्यधिक शुभ मानी जाती है, क्योंकि इसे नौ दिनों तक की तपस्या और भक्ति का फल माना जाता है। नवमी पूजा के अंतर्गत कन्या पूजन भी किया जाता है, जिसमें नौ कन्याओं का पूजन कर भोजन कराया जाता है। इसे साक्षात देवी के रूप में कन्याओं की पूजा मानी जाती है।

  3. मध्य रात्रि की पूजा

    तांत्रिक साधना और गुप्त रूप से शक्ति की साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि को अत्यधिक महत्व देते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समय में की गई पूजा से देवी शक्ति की कृपा प्राप्त होती है और साधक के जीवन में असाधारण शक्तियों का प्रवेश होता है। यह विशेष रूप से तंत्र साधना और देवी काली की आराधना से जुड़ी होती है।

शारदीय नवरात्रि का आध्यात्मिक पक्ष:

शारदीय नवरात्रि के नौ दिन साधक को अपनी आत्मा की शुद्धि, आंतरिक शक्ति का विकास, और देवी की कृपा प्राप्त करने का अवसर देते हैं। यह समय तपस्या, ध्यान, और भक्ति का होता है। नवरात्रि के माध्यम से लोग अपने भीतर की बुराइयों को खत्म कर, अच्छाई और सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान करते हैं।

यह नौ दिनों का त्योहार मां दुर्गा की आराधना के लिए मनाया जाता है, जो शरद ऋतु (अश्विन मास) में आता है। यह शक्ति की उपासना का पर्व है, जिसमें मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।

शारदीय नवरात्रि का महत्व:
  1. शक्ति की उपासना: यह पर्व देवी दुर्गा की शक्ति, साहस, और उनके विभिन्न रूपों का आह्वान करता है, जो कि ब्रह्मांड की संरक्षक हैं और बुराई पर विजय प्राप्त करती हैं।
  2. आध्यात्मिक शुद्धि: नवरात्रि का उद्देश्य साधक के मन, शरीर, और आत्मा को शुद्ध करना है। व्रत, पूजा, और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करता है।
  3. धर्म और संस्कृति का पर्व: इस समय कई धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक अनुष्ठान होते हैं, जो सामाजिक और धार्मिक मूल्यों को मजबूत करते हैं।
  4. दुर्गा सप्तशती का पाठ: देवी के शक्तिपीठों और घरों में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है, जो देवी की महिमा का वर्णन करता है।
  5. विजयादशमी: नवरात्रि का समापन विजयादशमी या दशहरा पर होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
नवरात्रि की पूजा कौन करता है:
  1. गृहस्थ लोग: सामान्य लोग अपने घरों में मां दुर्गा की स्थापना करते हैं और नौ दिनों तक व्रत, पूजा, और हवन करते हैं।
  2. साधु-संत और तांत्रिक: विशेष रूप से तांत्रिक और साधु-संत इस समय को विशेष अनुष्ठान, हवन और साधना के लिए शुभ मानते हैं।
  3. क्षत्रिय समुदाय: नवरात्रि का खास महत्व क्षत्रिय समुदाय के लिए है, क्योंकि यह देवी दुर्गा को शक्ति और युद्ध-कला की देवी के रूप में पूजते हैं।
इस प्रकार, नवरात्रि में की जाने वाली ये विशेष पूजाएं देवी की कृपा प्राप्त करने, बुराई का नाश करने, और आत्मा की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

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