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नरक चतुर्दशी : पापों से मुक्ति व जीवन में शुभता और समृद्धि लाने का दिवस

नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या काली चौदस भी कहा जाता है, दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का दूसरा दिन होता है। यह दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जो मुख्य दीपावली से एक दिन पहले आता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य बुराई और अज्ञानता को नष्ट करना और जीवन में प्रकाश और सच्चाई का स्वागत करना है। नरक चतुर्दशी का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व गहरा है, और इसके साथ जुड़ी पौराणिक कथाएँ इस पर्व को और भी खास बनाती हैं।

 

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा:

नरक चतुर्दशी का प्रमुख संबंध भगवान कृष्ण और राक्षस नरकासुर के वध से है। पुराणों में इस घटना का वर्णन है कि नरकासुर नामक एक अत्याचारी दानव ने पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था। उसने 16,000 से अधिक कन्याओं को कैद कर लिया था और देवताओं पर अत्याचार कर रहा था। उसके अत्याचारों से पृथ्वी त्राहिमाम कर उठी। तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की, जिन्होंने नरकासुर के वध का कार्य भगवान कृष्ण को सौंपा।

भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से नरकासुर का वध किया और पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त किया। इसके साथ ही उन्होंने कैद की गई कन्याओं को भी स्वतंत्र किया। इस विजय के दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

नरक चतुर्दशी का धार्मिक महत्व:

बुराई का अंत: इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की स्मृति होती है, जो यह दर्शाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती है। यह पर्व अंधकार, पाप और अज्ञानता से मुक्ति का प्रतीक है।

 

यमराज की पूजा: नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा का भी विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इस दिन यमराज की पूजा और दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। यमराज के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर लोग अपने और अपने परिवार की दीर्घायु और सुरक्षा की कामना करते हैं।

 

अभ्यंग स्नान: नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले तेल लगाकर स्नान करने की परंपरा होती है, जिसे अभ्यंग स्नान कहते हैं। यह स्नान शरीर की शुद्धि का प्रतीक है और इसे विशेष रूप से आवश्यक माना जाता है। इस स्नान के बाद शरीर को शुद्ध और निर्मल माना जाता है। यह कर्मकांड व्यक्ति के जीवन से बुराई, नकारात्मकता और अशुद्धता को दूर करने का प्रतीक है।

 

काली पूजा: नरक चतुर्दशी के दिन कुछ स्थानों पर देवी काली की पूजा भी की जाती है। काली देवी को अज्ञानता और नकारात्मकता को नष्ट करने वाली माना जाता है। यह पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और गुजरात में की जाती है, जहाँ लोग देवी काली का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी आराधना करते हैं।

 

नरक चतुर्दशी की विशेषताएँ:

दीयों का प्रज्वलन: इस दिन घरों में दीये जलाए जाते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक होते हैं। दीयों का प्रकाश जीवन में ज्ञान, समृद्धि और शांति लाने का संकेत माना जाता है। यह दीपोत्सव अंधकार को दूर करने और जीवन को रोशन करने का प्रतीक है।

स्नान और शुद्धिकरण: इस दिन विशेष स्नान की परंपरा है, जिसे अभ्यंग स्नान कहा जाता है। स्नान से पहले शरीर पर तेल मालिश की जाती है और इसे शारीरिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस स्नान का धार्मिक महत्व यह है कि यह व्यक्ति को पापों से मुक्त करता है और शरीर तथा आत्मा को शुद्ध करता है।

नरकासुर के वध का स्मरण: इस दिन नरकासुर के वध का जश्न मनाया जाता है, जो बुराई के अंत और अच्छाई की विजय का प्रतीक है। लोग इस दिन को बुराई को खत्म करने और जीवन में सकारात्मकता और सत्य को अपनाने के रूप में देखते हैं।

दीपदान: नरक चतुर्दशी के दिन घर के आंगन में और नदी या तालाब के किनारे दीपदान करने की परंपरा होती है। यह दीपदान यमराज के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। यह दीपदान आत्मा की शांति और जीवन में उजाला लाने का प्रतीक होता है।

 

नरक चतुर्दशी का सांस्कृतिक महत्व:

नरक चतुर्दशी का सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यह पर्व न केवल धार्मिक मान्यताओं का पालन करने का अवसर है, बल्कि समाज में अच्छाई, सकारात्मकता और एकता का संदेश भी फैलाता है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, दीये जलाते हैं, और अपने परिवार और मित्रों के साथ त्योहार का आनंद लेते हैं।

सफाई और सजावट: नरक चतुर्दशी के दिन घरों की सफाई और सजावट की जाती है। इसे बुराई और नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक माना जाता है। लोग अपने घरों को रंगोली, फूलों और दीयों से सजाते हैं, जिससे वातावरण में उत्साह और सकारात्मकता का संचार होता है।

सामाजिक सामंजस्य: यह पर्व समाज में आपसी प्रेम और सद्भावना का प्रतीक है। लोग अपने मित्रों और परिवार के साथ मिलकर इस दिन को मनाते हैं। इस दिन आपसी सहयोग और एकजुटता का भाव प्रबल होता है, जिससे समाज में एक सकारात्मक माहौल बनता है।

दिवाली की तैयारियाँ: नरक चतुर्दशी के दिन लोग मुख्य दीपावली की तैयारियों में जुट जाते हैं। यह दिन मुख्य दीपावली के लिए मन को तैयार करने और बुराई से मुक्ति पाने का अवसर होता है। इस दिन घर की सजावट, पूजा की तैयारी, और विशेष पकवान बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

 

धार्मिक मान्यता:

धार्मिक रूप से यह माना जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन यदि व्यक्ति सूर्योदय से पहले स्नान करके पूजा-अर्चना करता है, तो वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। साथ ही, यमराज को दीपदान करने से मृत्यु का भय दूर होता है और व्यक्ति को अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ता। यह दिन भगवान की कृपा प्राप्त करने और जीवन को शुभ और समृद्ध बनाने का विशेष अवसर माना जाता है।

नरक चतुर्दशी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती है। नरक चतुर्दशी का महत्व हमें यह याद दिलाता है कि हमें जीवन में सच्चाई, अच्छाई और सकारात्मकता को अपनाना चाहिए, और बुराई, नकारात्मकता और अज्ञानता को त्यागना चाहिए।

2 thoughts on “नरक चतुर्दशी : पापों से मुक्ति व जीवन में शुभता और समृद्धि लाने का दिवस”

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