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रामनवमी :: सनातन संस्‍कृति का पर्याय

चैत्र मास के शुक्‍ल पक्ष की नौवीं तिथि को मनाई जाने वाली राम नवमी का पर्व सनातन धर्म के आस्‍था और धार्मिकता का प्रतिबिम्‍ब है जिसमें प्रत्‍येक आस्‍थावानों की छवि मुखरित होती हैं। भगवान विष्‍णु के अवतार भगवान श्री राम के जन्म का प्रतीक है यह रामनवमी। सम्‍वत 2082 में रामनवमी की तिथि वर्तमान में प्रचलित कैलेन्‍डर के अनुसार  यह 6 अप्रैल 2025 को है। भक्त इस दिन व्रत, पूजा, रामायण पाठ और भजन के साथ ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हमारा यह एक प्रयास है कि इस लेख के माध्‍यम से रामनवमी के पर्व, इसकी तिथि, महत्व, अनुष्ठान और पूजा सेवाओं के बारे में उन बिन्‍दुओं को उजागर करना जो हमसभी को अवश्‍य ही जानना चाहिए। भारत के प्राचीन शास्त्रों ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि भगवान भक्तों उद्धार करने तथा दुष्टों का सर्वनाश करने के लिए समय-समय पर अपने विभिन्न अवतारों के रूप में प्रकटित होते रहे हैं। भगवान द्वारा की जाने वाली नित्‍यप्रति सभी गतिविधियाँ उनके प्रिय भक्तों द्वारा आराधित  हैं, और उनका ध्यान किया जाता है। ईश्‍वरावतारों द्वारा की जानेवाली इन गतिविधियों को ही उनकी लीला कहा जाता है। ऐसी ही लीलाएँ भगवान विष्णु ने अपने श्री रामावतार में की थीं।

हम राम नवमी क्यों मनाते हैं?

रामनवमी प्रभु श्रीराम के जन्मदिन का प्रतीक है क्योंकि इसदिन वे अपने सर्व-शुभ, दिव्य-मानव अवतार में प्रकट हुए थे। सूर्यवंशी कहे जाने वाले सुर्यकुल से आने वाले भगवान श्री रामचंद्र अयोध्या नरेश श्री दशरथ और रानी माता कौशल्या के पुत्र थे। उनके तीन अनुज थे, कैकेयी के भरत और सुमित्रा के लक्ष्मण और शत्रुघ्न। अपने गुरु विश्वामित्र से प्रशिक्षित होकर, भगवान राम ने युद्धकौशल का अध्ययन और अभ्यास किया और यह सब उस समय के असुरी शक्तियों के विरूद्ध किया गया जिन्होंने वैदिक यज्ञ और मानव हितों में किये जाने वाले कार्यों को बाधित करने का प्रयास किया था।

इस दिन अर्थात् रामनवमी में लोग, विशेष रूप से रामायण पढ़ते या सुनाते हैं, पूजा व अनुष्‍ठानों का आयोजन करते हैं और मंदिरों में यज्ञ और हवन करते हैं। लोग पवित्र स्नान के लिए बालक श्री राम की मूर्ति को निकालते हैं और पालने में रखने से पहले उसे नए कपड़े पहनाते हैं। कुछ स्थानीय समूह या मंडल धर्मार्थ कार्यक्रम और सामुदायिक भोजन का आयोजन करते हैं। लोग इस दिन उपवास भी रखते हैं। हालाँकि, इस दिन सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गतिविधि भगवान रामचंद्र को समर्पित भजन या भक्ति गीत है। रामायण का केंद्रीय भाग सांसारिक मामलों से पूरी तरह से अलग होकर अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन करना और सर्वोच्च भगवान के प्रति लगाव पैदा करना है। इस तरह से प्रभु श्री राम के लीला से प्रेरित हो हमें अपने जीवन को मार्यादित बनाना है।

2025 में राम नवमी; राम नवमी तिथि/तिथि और मुहूर्त

नवमी तिथि प्रारंभ – 05 अप्रैल, 2025 को शाम 07:26 बजे

नवमी तिथि समाप्त – 06 अप्रैल, 2025 को शाम 07:22 बजे

रविवार, 6 अप्रैल, 2025 : राम नवमी (उदयातिथ‍िनुसार)

राम नवमी मध्याह्न मुहूर्त : सुबह 11:08 बजे से दोपहर 01:39 बजे तक अवधि – 02 घंटे 31 मिनट

राम नवमी मध्याह्न क्षण – 12:24 अपराह्न

राम नवमी का शास्त्रोक्त सन्दर्भ

भगवान ब्रह्मा ने अपने ग्रंथ ब्रह्म संहिता में भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा:

रामादि-मूर्तिषु कला-नियमेन तिष्ठन् नानावतारमकरोद्भुवनेषु किं तु।
कृष्णः स्वयं समभवत्परमः पुमान् यो गोविन्दमादि-पुरुषं तमहं भजामि॥

अर्थ – इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान श्रीहरि अनेक रूपों में अवतरित होते हैं, जिनमें श्रीराम, नरसिंह, वामन आदि विभिन्न अवतार शामिल हैं। लेकिन वे सभी श्रीकृष्ण की दिव्य कलाएँ हैं। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही परम पुरुष हैं, जो अनेकों अवतार धारण करते हैं।

भगवान ब्रह्मा की प्रार्थनाएँ इस तथ्य की पुष्टि करती हैं कि भगवान अपने विभिन्न अवतारों में प्रकट होते हैं। जिनमें से श्री राम अवतार न्याय, नैतिकता और बुराइयों पर विजय का प्रतीक है। वसंत नवरात्रि के एक भाग के रूप में, राम नवमी को वैदिक/हिंदू कैलेंडर माह चैत्र के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन मनाया जाता है।

राम नवमी का आध्यात्मिक महत्व

राम (रा और मा): ‘रा’ का अर्थ है प्रकाश। ‘मा’ का अर्थ है भीतर। आपके भीतर का दिव्य प्रकाश ही राम है।

अयोध्या: भगवान राम की जन्मभूमि और राजधानी। ‘अ’ ‘योध्या’ का नकारात्मक उपसर्ग है जिसका अर्थ है ‘युद्ध’। इसलिए, ऐसा स्थान जहाँ युद्ध न हो बल्कि समृद्धि और न्याय हो, उसे अयोध्या कहा जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि सत्य युग में, विभिन्न ग्रहों के देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुए थे। त्रेता युग में, देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुए जो अलग-अलग स्थानों पर रहते थे, लेकिन एक ही ग्रह पर रहते थे (अयोध्या से राम और लंका से रावण)। द्वापर युग में, एक ही परिवार (पांडव और कौरव) में रहने वाले लोगों के बीच युद्ध हुए। कलियुग में, युद्ध हमारे भीतर हैं जिसमें श्री राम हमारी आत्मा हैं, माता सीता हमारा मन है, श्री हनुमान जी (पवन देव के पुत्र) हमारी जीवन शक्ति (प्राण) हैं और रावण हमारा अहंकार है। रावण (अहंकार) सीता (मन) पर कब्जा कर लेता है जो राम (आत्मा) को बेचैन कर देता है। मन और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए, व्यक्ति को पूरी जागरूकता के साथ ध्यान और सांस (हनुमान) लेने की आवश्यकता होती है। एक बार सामंजस्य स्थापित हो जाने पर, राम और सीता फिर से मिल जाते हैं और अहंकार नष्ट हो जाता है।

राम नवमी उत्सव: राम नवमी क्यों और कहाँ मनाई जाती है?

हम राम नवमी इसलिए मनाते हैं क्योंकि इसे सामाजिक भावना से मनाया जाता है। लोग रामायण का पाठ करते हैं या रामायण, श्रीमद्भागवतम और इसी तरह के अन्य धर्मग्रंथों को पढ़ते हैं। चूँकि भगवान पूर्ण सत्य हैं, इसलिए किसी भी रूप में की गई प्रार्थनाएँ स्वयं में पूर्ण हैं। कोई व्यक्ति केवल पाठ सुन सकता है या मंदिरों या घर पर राम नवमी की आरती, भजन, कीर्तन (भक्ति गीत) में भाग ले सकता है। शास्त्रों में वर्णित दिव्य गुणों को सुनना सभी भक्ति में सर्वश्रेष्ठ है। इस दिन भगवान श्री राम के अभिषेक (राज्याभिषेक) समारोह में भी भाग लिया जा सकता है। कोई व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण द्वारा शासित दस मुखी रुद्राक्ष, भूमिदेवी (विष्णु की पत्नी) द्वारा शासित अठारह मुखी रुद्राक्ष और भगवान नारायण द्वारा शासित उन्नीस मुखी रुद्राक्ष पहन सकता है। ये सभी मालाएँ भगवान विष्णु या स्वयं राम से जुड़ी हैं। आप व्रत भी रख सकते हैं और राम के मंदिरों में सेवा कर सकते हैं। यह हनुमान जी द्वारा की गई सेवा के बराबर माना जाता है क्योंकि भक्ति भाव से मंदिर सेवा में शामिल होना भी श्री राम के चरण कमलों की सेवा करना है। ऐसा भक्त दुर्लभ है।

राम नवमी पूजा विधि और मंत्र जप करना

राम नवमी के दौरान शास्त्रों के अनुसार की गई पूजा-अनुष्‍ठान अत्यधिक शुभ होती है, जो हमारे जीवन तथा घर में साकारात्‍मक ऊर्जा का संचार करता है और सुख-शांति व वैभव का आगमन होता है। राम नवमी पूजा में मुख्‍यतया यह विधियां शामिल हैं: कलश स्थापना, पंचांग स्थापना (गौरी गणेश, पुण्यवचन, षोडश मातृका, नवग्रह, सर्वोत्भद्र), 64 योगिनी पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, स्वस्ति वचन और संकल्प।

इसके अलावा, इसमें गणेश पूजन और अभिषेक, नवग्रह पूजन और ग्रह मंत्रों के जाप, कलश में प्रमुख देवी-देवताओं का आह्वान, श्री राम-सीता पूजन, सुंदरकांड का पाठ, राम रक्षा स्तोत्र के पाठ, राम रक्षा स्तोत्र जप, यज्ञ, आरती, हवन और पुष्पांजलि शामिल हैं।

रामनवमी का इतिहास | भगवान श्री राम व रामायण की कहानी संक्षेप में

रामायण हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा था। यह ग्रंथ भगवान श्रीराम के जीवन, उनके आदर्श चरित्र, मर्यादा, भक्ति, कर्तव्य और धर्म की महान गाथा को प्रस्तुत करता है।

रामायण की संरचना :: रामायण में 24,000 श्लोक, 500 सर्ग और 7 कांड हैं। रामायण केवल एक महाकाव्य नहीं, बल्कि यह धर्म, नीति, कर्तव्य, सत्य, भक्ति और त्याग का मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ है। यह संपूर्ण समाज के लिए आदर्श जीवनशैली का संदेश देता है और श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम” के रूप में प्रस्तुत करता है। रामायण के प्रसंग युगों से जनमानस को प्रेरित करते आए हैं और इसका पाठ हिंदू संस्कृति में विशेष धार्मिक महत्व रखता है।

रामायण एक दिव्य महाकाव्य है, जो धर्म, कर्तव्य, प्रेम, त्याग और मर्यादा का अनुपम आदर्श प्रस्तुत करता है। इसकी कथा भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित है, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।

रामायण की संक्षिप्त कथा
बाल कांड

बाल कांड रामायण का प्रथम कांड है, जिसमें भगवान श्रीराम के जन्म, उनकी बाल लीलाओं, ऋषि विश्वामित्र के साथ यात्रा और माता सीता से विवाह का वर्णन किया गया है। अयोध्या के राजा दशरथ को संतान प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ करना पड़ा, जिससे उन्हें राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न नामक चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। जब श्रीराम और लक्ष्मण बड़े हुए, तब ऋषि विश्वामित्र उन्हें राक्षसों के विनाश के लिए अपने साथ ले गए, जहाँ श्रीराम ने ताड़का, सुबाहु का वध किया और मारीच को परास्त किया। इसके बाद, वे मिथिला पहुंचे और जनकपुरी में आयोजित स्वयंवर में भगवान शिव के धनुष को उठाकर तोड़ दिया, जिससे माता सीता के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ। इस कांड में धर्म, भक्ति, शक्ति, कर्तव्य और आदर्श जीवन के सिद्धांत मिलते हैं, तथा यह दर्शाता है कि सत्य और धर्म का पालन करने वाले को सदा विजय प्राप्त होती है

 अयोध्या कांड

अयोध्या कांड रामायण का दूसरा कांड है, जिसमें श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी, कैकेयी के वरदान, वनवास और राजा दशरथ के वियोग का वर्णन है। जब राजा दशरथ ने श्रीराम को युवराज घोषित किया, तब मंथरा के बहकावे में आकर कैकेयी ने दो वरदान मांगे—भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए 14 वर्षों का वनवास। श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वन जाने का निश्चय किया, और माता सीता तथा लक्ष्मण भी उनके साथ चल पड़े। राजा दशरथ ने राम-वियोग में प्राण त्याग दिए, और भरत ने अयोध्या आकर सिंहासन पर बैठने से इनकार कर दिया, श्रीराम की चरणपादुका को राजसिंहासन पर रखकर रामराज्य चलाने का संकल्प लिया। यह कांड त्याग, कर्तव्य, भक्ति और मर्यादा का प्रतीक है, जिससे यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा धर्म स्वार्थ त्यागकर कर्तव्य पालन में निहित है।

अरण्य कांड

अरण्य कांड रामायण का तीसरा कांड है, जिसमें श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के वनवास के दौरान घटित घटनाओं का वर्णन मिलता है। इस कांड में श्रीराम ने कई ऋषियों और मुनियों से भेंट की, शूर्पणखा के अपमान के बाद खर-दूषण का वध किया, जिससे रावण क्रोधित हुआ। रावण ने मारीच के छल का सहारा लेकर स्वर्ण मृग का रूप धारण कराया, जिससे मोहित होकर सीता ने उसे लाने की इच्छा व्यक्त की। जब श्रीराम और लक्ष्मण मृग के पीछे गए, तब रावण ने साधु वेश में आकर सीता माता का हरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। इस कांड में धर्म और अधर्म की पहली बड़ी टक्कर, रावण की धूर्तता, और श्रीराम का धैर्य व संकल्प दिखाया गया है, जिससे यह शिक्षा मिलती है कि लोभ, मोह और छल से सदा सावधान रहना चाहिए।

किष्किंधा कांड

किष्किंधा कांड रामायण का चौथा कांड है, जिसमें श्रीराम और वानरराज सुग्रीव की मित्रता, बाली वध और सीता माता की खोज की योजना का वर्णन मिलता है। श्रीराम और लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे, जहां उनकी भेंट हनुमान जी से हुई, जिन्होंने उन्हें सुग्रीव से मिलवाया। सुग्रीव ने श्रीराम से अपनी पीड़ा व्यक्त की कि उसका भाई बाली ने उसे निष्कासित कर दिया और उसकी पत्नी को छीन लिया है। श्रीराम ने बाली का वध कर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया, और बदले में सुग्रीव ने वानर सेना को सीता माता की खोज के लिए भेजा। इस कांड में मित्रता, विश्वास, न्याय और अधर्म के नाश का संदेश मिलता है, तथा हनुमान जी को श्रीराम का परम भक्त और सेवक बनने का अवसर प्राप्त होता है।

सुंदर कांड

सुंदर कांड रामायण का पाँचवाँ कांड है, जिसमें हनुमान जी की वीरता, भक्ति और बुद्धिमत्ता का अद्भुत वर्णन किया गया है। इसमें हनुमान जी लंका की यात्रा करते हैं, माता सीता को खोजते हैं और उन्हें श्रीराम का संदेश देकर उनके धैर्य को बनाए रखने का आग्रह करते हैं। वे रावण के दरबार में जाकर उसे श्रीराम का संदेश देते हैं और लंका में अपना पराक्रम दिखाते हुए अशोक वाटिका का विध्वंस कर देते हैं। हनुमान जी लंकादहन करके वापस लौटते हैं और श्रीराम को माता सीता के दर्शन और उनकी स्थिति की जानकारी देते हैं। यह कांड भक्ति, साहस, नीति और विजय का प्रतीक है और इसके पाठ से भय नाश, संकटों से मुक्ति और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।

युद्ध कांड (लंकाकांड)

युद्ध कांड, जिसे लंका कांड भी कहा जाता है, रामायण का छठा और सबसे महत्वपूर्ण कांड है, जिसमें श्रीराम और रावण के बीच महायुद्ध का विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीराम ने वानर सेना के साथ समुद्र पर पुल (रामसेतु) बनाकर लंका पहुंचकर युद्ध का बिगुल फूंका, जिसमें रावण के पराक्रमी योद्धा जैसे मेघनाद, कुम्भकर्ण और अनेक असुर मारे गए। इस कांड में श्रीराम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें अंततः भगवान राम ने रावण का वध कर लंका विजय प्राप्त की और धर्म की विजय स्थापित की। माता सीता ने अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता सिद्ध की, और विभीषण को लंका का नया राजा बनाया गया। श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे, जहाँ उनका भव्य राज्याभिषेक हुआ, और रामराज्य की स्थापना के साथ यह कांड समाप्त होता है।

उत्तर कांड

उत्तर कांड रामायण का अंतिम एवं सातवां कांड है, जिसमें श्रीराम के अयोध्या लौटने, राज्याभिषेक, रामराज्य की स्थापना और उनके लोकगमन का वर्णन है। श्रीराम ने धर्म और न्याय पर आधारित शासन किया, लेकिन समाज में उठे सवालों के कारण उन्होंने माता सीता का वनवास कर दिया, जो ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में रहने लगीं और वहीं लव-कुश का जन्म हुआ। लव-कुश ने श्रीराम के दरबार में आकर रामकथा सुनाई, जिससे श्रीराम को माता सीता की पवित्रता का पुनः प्रमाण मिला, लेकिन सीता माता ने धरती में समा जाने की प्रार्थना कर पृथ्वी लोक से विदा ले लीं। श्रीराम ने अपने भाइयों को लोकहित में विभिन्न कार्य सौंपे और अंततः स्वयं सरयू नदी में प्रवेश कर जल समाधि लीं तथा अपने लोक (बैकेुण्ठधाम) को प्रस्थान किया। इस कांड में श्रीराम के त्याग, न्यायप्रियता, मर्यादा, और परमधर्म पालन का उच्चतम आदर्श मिलता है, जो समस्त मानवता के लिए प्रेरणास्रोत है।

रामायण के नैतिक और धार्मिक मूल्य
  • धर्म पालन का आदर्श : श्रीराम ने अपने जीवन में धर्म और सत्य को सर्वोपरि रखा। वे स्वयं विष्णु के अवतार होकर भी मानव रूप में मर्यादा का पालन करते रहे। चाहे राज्य का त्याग हो, वनवास की कठिनाई हो, या रावण से युद्ध—उन्होंने हमेशा धर्म के मार्ग पर चलकर ही कार्य किया।
  • आदर्श पुत्र : श्रीराम ने माता-पिता की आज्ञा को सर्वोच्च माना और 14 वर्षों का वनवास खुशी-खुशी स्वीकार किया।
  • आदर्श पति : उन्होंने माता सीता से सच्चा प्रेम किया और उनके वियोग में दुखी रहे। उनकी रक्षा के लिए रावण से युद्ध किया।
  • आदर्श भाई : लक्ष्मण ने राम के साथ वनवास में कष्ट सहे, तो भरत ने रामराज्य की रक्षा के लिए सिंहासन पर बैठने से इनकार कर दिया।
  • आदर्श राजा : रामराज्य का आदर्श सत्यम, प्रेम, न्याय और समानता पर आधारित था। उन्होंने समाज के हित को निजी जीवन से ऊपर रखा।
  • भक्ति और सेवा का संदेश : हनुमान जी ने निष्काम भक्ति का आदर्श स्थापित किया, जो हर भक्त के लिए प्रेरणा है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम: संपूर्ण मानवता के आदर्श
  • कर्तव्यनिष्ठता – उन्होंने अपने सुख-दुख की परवाह किए बिना राजधर्म, पतिधर्म, भ्रातृधर्म और मित्रधर्म का पालन किया।
  • सत्य पर अडिग – उन्होंने जीवन में कभी असत्य का सहारा नहीं लिया।
  • समर्पण की भावना – राज्य, परिवार, प्रेम और रिश्तों को धर्म के सामने न्योछावर कर दिया।
  • शासन का आदर्श मॉडल – रामराज्य में न्याय, समानता, प्रेम और कल्याण सर्वोपरि थे।
  • साहस और धैर्य – विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने धैर्य और साहस बनाए रखा।
श्रीराम हर मानव के लिए प्रेरणा हैं, और रामायण हमें सिखाती है कि सत्य, धर्म और मर्यादा का पालन ही जीवन का परम उद्देश्य है। रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन को दिशा देने वाला एक दैवीय मार्गदर्शन है। इसमें वर्णित आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों वर्ष पहले थे। यदि मानवता श्रीराम के आदर्शों को अपनाए, तो समाज में शांति, सद्भाव, प्रेम और धर्म का विस्तार होगा।

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